
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
के आर अरुण
समाज जागरण24tv
रुद्रप्रयाग /देहरादून
जंगलों में बढ़ती आग को रोकने की सही पहल ना होने से पर्यावरण नस्ट हो रहा है जबकि गावों के जंगलों की अमूल्य ओसधियाँ नस्ट होने के कगार पर है इसको देखते हुए उत्तराखंड का ऐतिहासिक चिपको आंदोलन फिर महिलाओं की जागरूकता से अस्तित्व में आने की तैयारी करता दिख रहा है।
खबर हैकि रुद्रप्रयाग. पहाड़ों में लगातार आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे जंगलों को नुकसान तो हो ही रहा है लेकिन इसके साथ-साथ वहां मौजूद जंगली जानवरों, पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों की भी क्षति हो रही है. जिसे देखते हुए देवभूमि की महिलाओं ने एक बार फिर से (चिपको आंदोलन की भांति) जंगलों को बचाने का बीड़ा उठा लिया है. महिलाएं वन विभाग और सरपंच के साथ मिलकर एक बढ़ी भूमिका के लिए तैयारियां कर रही हैं.

रुद्रप्रयाग जिले की वन पंचायत सरपंच ऊखीमठ ने स्थानीय महिलाओं को जंगलों की सुरक्षा के लिए जागरूक किया है. सरपंच ने करीब 800 से 1000 महिलाओं के साथ मिलकर जंगलों को आग से बचाने के लिए नई मुहिम शुरू की है. दरअसल, ऊखीमठ के वन पंचायत सरपंच जंगलों में लगने वाली आग को रोकने और वन संपदा को राख होने के बचाने के लिए ग्रामीण महिलाओं से लगातार संवाद कर रहे हैं. उन्हें वनाग्नि से होने वाले नुकसान की बारीकी से जानकारी भी दे रहे हैं. इसके साथ ही जंगलों की सुरक्षा की भी जानकारी से रूबरू करा रहे हैं. इस पहल का असर महिलाओं पर हुआ है. महिलाएं जंगलों में आग लगाने वालों पर पैनी नजर बनाए हुई हैं.
इतिहास उत्तराखंड
ग्राम जंगल बचाने को -गौरा देवी के जैसा होगा प्रयास-
वहां पर सक्रिय सरपंच पवन बताते हैंकि ग्रामीणों को जंगलों में आग न लगाने के लिए जागरूक होने की जरूरत है.हमारी कोशिश हैकि जंगल में आग लगाने वाले लोगों को अनिवार्य रूप से सजा दी जाये और घटना की सूचना देने वालों को सम्मानित किया जाएगा। यह अनैतिक हैकि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं. जिससे जंगलों, जीव जंतुओं को नुकसान पहुंचता है। जाग्रत महिलाओं से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए सभी को बढ़ चढ़कर अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करनी होगी. वहीं महिलाओं ने कहा कि जिस प्रकार 1973 में गौरा देवी द्वारा अपनी 27 सहेलियों के साथ मिलकर जंगलों को बचाने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल दी थी. उसी प्रकार वह भी जंगलों को कटने और जलने से बचाने के लिए हर एक प्रयास करेंगी.
जानिये महिला आंदोलन महिमा उत्तराखंड –
गौरा देवी रेणी गांव की ही रहने वाली थीं. वो एक अनपढ़ और बुजुर्ग महिला थीं. उनके नेतृत्व में 27 महिलाओं ने अपनी जान की बाजी लगाकर पेड़ों की इस कटाई को नाकाम कर दिया था. पेड़ों से चिपककर पेड़ काटने वालों को रोकने में मशहुर यह ‘चिपको आन्दोलन’ के दौरान ये नारा भी बहुत मशहूर हुआ था। अतीत के महान आंदोलन की नीव जिसे दुनिया ने सराहा आज से कुछ साल पहले स्वार्थ के अंधे लोगों ने जंगलों की बलि चढ़ाते हुए जंगल जमीन का नाश किया परिणाम हुआ की उत्तराखंड में चमोली जिले के रैणी गांव के नजदीक ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही हुई है. कुदरत का ये कहर उसी रैणी गांव के पास टूटा है, जहां की महिलाएं पर्यावरण को बचाने के लिए कुल्हाड़ियों के आगे डट गई थीं. रैणी गांव की महिलाओं ने ही चिपको आंदोलन चलाया था. लेकिन पर्यावरण को बचाने के लिए लड़ने वाले रैणी गांव को ही आज बिगड़ते पर्यावरण की मार झेलनी पड़ी।
गहराई और चिंतन की आवाज बन गया था आंदोलन –
जी हाँ उत्तराखंड का रैणी गांव ही वो जगह है, जहां दुनिया का सबसे अनूठा पर्यावरण आंदोलन शुरू हुआ था. साल 1970 में पेड़ काटने के सरकारी आदेश के खिलाफ रैणी गांव की महिलाओं ने जबर्दस्त मोर्चा खोल दिया था. जब लकड़ी के ठेकेदार कुल्हाड़ियों के साथ रैणी गांव पहुंचे तो रैणी गांव की महिलाएं पेड़ों से चिपक गई थीं. महिलाओं के इस भारी विरोध की वजह से पेड़ों की कटाई रोकनी पड़ी थी. उस वक्त उत्तराखंड राज्य नहीं बना था और ये इलाका उत्तर प्रदेश का हिस्सा था।
चिपको आन्दोलन की सबसे खास बात ये थी कि-
इस आन्दोलन का नेतृत्व देश के मशहूर पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट और श्रीमती गौरादेवी ने किया था. गौरा देवी रेणी गांव की ही रहने वाली थीं. वो एक अनपढ़ और बुजुर्ग महिला थीं. उनके नेतृत्व में 27 महिलाओं ने अपनी जान की बाजी लगाकर पेड़ों की इस कटाई को नाकाम कर दिया था-
इसमें महिलाओं ने भारी तादाद में हिस्सा लिया था. एक दशक में ये आन्दोलन उत्तराखण्ड के पूरे इलाके में फैल गया था. चिपको आंदोलन जंगलों की बेतरतीब कटाई रोकने और जंगलों पर आश्रित लोगों के अधिकारों की रक्षा का आंदोलन था. रेणी में 2400 से ज्यादा पेड़ों को काटा जाना था, इस पर वन विभाग और ठेकेदारों ने भी जान लड़ा रखी थी. पेड़ों की कटाई रोकने के लिए महिलाओं के पेड़ से चिपकने की तस्वीर इस आंदोलन का सबसे बड़ा निशान बनी थी, पूरी दुनिया की नजरें रैणी गांव के इस अनूठे आंदोलन की तरफ थीं।
जल जंगल जमीन की सुरक्षा के मायने –
समझिये क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space
आणखी कथा
