ये कैसा इंसाफ मांग रही प्रकृति – कहीं इंसानी भूलों का प्रायश्चित तो नहीं चाहिए धरती पुत्रों से – एक विश्लेषण विचार – बहुत जरूरी है आपदाओं से समझ को- समझाने की-
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दैनिक समाज जागरण –
कृष्ण राज अरुण-
भारतरत्न नंदा जी के परमशिष्य –
ये कैसा इंसाफ मांग रही प्रकृति – कहीं इंसानी भूलों का प्रायश्चित तो नहीं चाहिए धरती पुत्रों से – एक विश्लेषण विचार हम सभी जीवित समाज के आगे रखना जरूरी है ?जैसा कि हिमालय से बहुत गम्भीर संकट की स्थिति जो सामने आई है – इंसान के विज्ञानं के तात्कालिक हल से बाहर की बात है। केवल साहस धैर्य विवेक और मजबूत सहभागिता। केवल अभी मनोबल बढ़ाने की बात होनी चाहिए। यह बात तय है सभ्यता रुठनी नहीं चाहिए -आरोप से क्रोध से कुछ समाधान नहीं होगा – जो सह जायेंगे वे ही भविष्य के प्ररेणा कहलायेंगे। \ये वक्त हर दिल के पसीज जाने का है – नफरत भी प्यार में सहयोग में बदल दे ऐसी मानवता करुणा ही वक्त की संजीवनी दे सकती है।
वास्तव में यदि हम के जीवन पर ये सब उतारकर देखें तो पर उतारें यह स्थिति तो कुदरत की नाराजगी बिलकुल जायज लगेगी-
नैतिक दिवालियेपन के कारण इंसान छोटी छोटी जरूरतों निजी हितों में पिस् जाने से उसे समझ नहीं आ रहा कि वह खोज क्या रहा है ?
खुद को या निजी स्वार्थ को – ? जबतक यह नहीं समझेंगे पुरुषार्थ असम्भव है।
अब उसे यह भी नहीं पता कि उसके स्वार्थ की गिरावट कितनी है किन वजहों से है , ऐसा उसे क्या नहीं मिला जिसकी उसे भूख है। भूख की सीमा क्या है -?
पिघलते हिमालय न गलेशियरों की आहट कई बार चेतावनी देती आई है वास्तव में हमे चेताया जारा रहा कि हिमालय संपूर्ण मानवता को माता रूपी प्रकृति का एक अमूल्य उपहार है. हजारों वर्षों से बर्फ से ढंके इन पहाड़ों ने हमारी रक्षा की है,अनदेखी कक नतीजा कहता है कि
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अब समय आ गया कि हम सभी सामूहिक रूप से हिमालय की रक्षा करें।
2013 उत्तराखंड को हमे नहीं भूलना चाहिए था परिणाम हमने भयावह पहाड़ों में भरी वर्षा रूपी भूसंख्लन – बादल फटने से लेकर नदियों के उफानी वेग ने घर मकान दुकान उद्यम वाहनों के चलते सब ले गयी अब तक लाशें खोज रहे हैं।
मनुष्य के लिए धरती पर बर्फ का होना उतना ही जरूरी है जितना मिट्टी, हवा व पानी का। लेकिन, सामान्यतः बर्फ के महत्व के बारे में कम चर्चा होती है।तापमान वृद्धि के कारण पूरी पृथ्वी और महासागरों का तापमान बढ़ता जा रहा है और इसके बढ़ाते तापमान के साथ ही पृत्वी के दोनों ध्रुवों और ऊचे पगादों पर जमी बर्फ की परत के पिघलने की रफ़्तार तेज होती जा रही है।
ऐसी आपदाएं जो बाढ बनकर इसके पिघलने के बाद यह पानी महासागरों में जा रहा है, जिससे सागर तल की औसत ऊंचाई इस शताब्दी के अंत तक एक मीटर बढ़ जाएगा, जिससे पूरी दुनिया का भूगोल और जनसंख्या का वितरण प्रभावित होगा।
ओसतन आंकलन सागर तल महज एक सेंटीमीटर बढ़ता है तब पूरी दुनिया में लगभग 10 लाख लोग विस्थापित होते हैं। दूसरी तरफ जब ध्रुवों की बर्फ का ठंडा पानी भारी मात्रा में महासागरों में मिलता है तब उसमें रहने वाले जीव जंतु प्रभावित होते हैं।
हम भी क्या कोलू के बैल हैं किसी के हांकने में पेले जा रहे हैं – नहीं हम खुद को खुद ही पेल रहे हैं मशीन बनकर –
आपदा भी हमारी मजबूत से मजबूर होती हड्डियां हैं जिनका ख्यान नहीं रखा हमने तो, विपदा बनकर लड़खड़ाकर गिर जाएगी । हड्डियों ने हमारा ख्याल रखा पर हमने नहीं रखा तो आपदाएं संकट आएंगे। हम गिरेंगे जैसे पहाड़ घर गाड़ियां गिर रही हैं मलबे की तरह ढेर हो रही हैं नदियां दूर बहा कर ले जा रही हैं – ?
अब देखिये आप आपका कोई सामान घर गाड़ी छेड़ दे तो आप थाना कचह्ररी तूफान कर देते हो अब विपदा आपदा बनकर आई ले गयी आप झगड़ पाए उससे नहीं ? क्योंकि कुदरत है जैसे देती है वैसे लेती है। हम भी कर्ज देते हैं ….लेते हैं –
शरीर ने हमे बहुत कुछ दिया हमे चलाया फिराया खिलाया दिखाया हर सौंदर्य बहते नयन रस दिखे मन गद गद करते रहे – मगर उसके बदले हमने क्या दिया उसे – ?ख्याल नहीं रखा – बचपन जवानी के इस शरीर ने हमे सब दिया – मगर ह्मने शरीर को क्या दिया ? किसी के दो आंसू न निकलें बे वजह कभी शयद ही पोरत्साहन दिया हो। किसी कोई बढ़ावा दिया कि जिंदगी की रेस में वह फेल होने से बच जाए तो जबाब मिलता है नहीं – क्यों यदि ऐसा है तो चाँद से शीतलता सूर्य से ऊर्जा लेने का हक क्या है -!
वफ़ा के बदले वफ़ा न मिले तो दुःख होता है मगर बेवफाई में वफ़ा न मिले तो दुःख कैसा क्यों ?
आज कुदरत का कहर हमसे इन्साफ मांग रहा है –
उसने जो दिया हमने उसे उजाड़ा अपने स्वार्थ के लिए – अब कुदरत उजाड़ रही है कस्ट क्यों ?
कहा जाता है कुदरत का कानून सबसे बड़ा कानून होता है और कुदरत कब क्या कर जाए यह किसी को नहीं पता होता है। आज उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कुछ ऐसा ही भयावह मंजर देखने को मिल रहा है। आज इस लेख के माध्यम से हम हिमालयी राज्यों खासकर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पहाड़ो के दरकने के बारे में चर्चा में हम जानेंगे की पहाड़ क्यों दरक रहे है ये ताश की तरह क्यों बाह रहे हैं।
हरियाणा के हजारों गावों सहन कर रहे हैं हिमालय की दी आपदा –
हिमाचल में इतनी बड़ी तबाही आत्मा झकझोर दी – शायद पर्वतों झीलों सुंदर वनों की भव्यता भी इंसानो ने ऐसे ही रौंदी है एक मकान पर कई मकान – सड़कें भी नहीं छोड़ी दीवारें भी नहीं छोड़ी एक इंच की शायद साँस लेने को जगह मिले तो बेहतर मगर नहीं सब निचोड़ दिया ?
कुदरत के कहर से सभी लोग सहमे हुए से है।
प्रकृति जब कहर बरपाती है तो फिर उसकी चपेट में चाहे जो आये उसे बक्शा नहीं जाता। हिमाचल और उत्तराखंड राज्य में इन दिनों प्रकृति कुछ इसी प्रकार कहर बरपा रही है। भूस्खलन के कारण जगह-जगह तबाही के मंजर सामने आ रहे है।
अब विज्ञानी मत हैकि पानी उत्तरते ही बीमारियां तंग करेगी -सावधानी चाहिए
देशी ला जवाब नुस्खे –
स्वच्छ जल फिलटर युक्त उबला पीना पढ़ेगा। काढ़ा कालीमिर्च लॉन्ग युक्त कुपोषण मरने वाले प्रयोग शरीर को चाहिए। नीम की पत्तियां फिरकरी घट में जरूर रखें प्रयोग में लाएं शरीर को फोड़े फुंसियां रोकेंगे।
मन की बात में भी देश समझें क्यों जरूरी है धैर्यशील विवेक सहभागिता –
गीता तपो उद्गम सहित नई दिल्ली देश की सत्ता जिसमे प-ेरमार्थ कौशल बढ़ाने की जरूरत –
खूब सूरत जगह सब घूमने जाते हैं सैर करके आते हैं गंदगी कचरा छोड़ आते हैं।
प्रलय गंगा नहाने जाओ तब कचरा छोड़ आओ क्यों -प्रलय कारणों से देश को प्रभावशाली तरीके से समझना समझाना जरूरी कि , पवित्र नदियों में लाशें क्यों गंदगी क्यों ?दिल्ली तक जल प्रलय पहुंचा क्योंकि दिल्ली न्याय मंदिर देस की आवाज हैं -जलप्रलय दिल्ली से हिसाब मांग रहा क्या हिमालय सिर्फ पिकनिक नहीं हमारा ध्वजः है ?प्रलय कारणों से देश को प्रभावशाली तरीके से समझना देश को समझाना जरूरी –
केंद्रीय सत्ता जिसमे प-ेरमार्थ कौशल बढ़ाने की जरूरत -सत्ता से भी आवेग रूपी अनुरोध मन की बात में जरूरी हैकि प्रलय कारणों से समझे हिमालय में गोलियों की बौछारे विस्फोट गर्जनाएं भूसंख्लन तबाही रुकनी चाहिए ,भारत भविष्य का बेकुन्ठ धाम है तो शिक्षा प्रद चेतावनी होनी चाहिए।
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आणखी कथा
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