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आज के युग में अजूबा – एक ऐसा गांधीवादी इतिहास जो 2 बार प्रधान मंत्री रहे, कई साल केंद्रीय मंत्री रहे, एक मकान तक नहीं जोड़ा – सदाचार के भ्रतृहरि भारतरत्न नंदा

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-इतिहास न भुला पाने वाली कार्यशैली थी भारत रत्न श्री गुलजारी लाल नंदा की –

(प्रस्तुति – कृष्णराज अरुण चेयरमेन गुलजारीलाल नंदा फाउंडेशन दिल्ली)

सदाचार के भ्रतृहरि –गांधीवादी श्रमिक राजनीति के जनक पूर्व प्रधान मंत्री भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा —

सदाचार के भर्तृहरि सम्पूर्ण गाँधीवाद के साकार रूपश्री गुलजारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को पंजाब के सियालकोट में हुआ था। उन्होंने लाहौर, आगरा एवं इलाहाबाद में अपनी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1920-1921) में श्रम संबंधी समस्याओं पर एक शोध अध्येता के रूप में कार्य किया एवं 1921 में नेशनल कॉलेज (मुंबई) में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक बने। इसी वर्ष वे असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। 1922 में वे अहमदाबाद

(प्रस्तुति – कृष्णराज अरुण चेयरमेन गुलजारीलाल नंदा फाउंडेशन दिल्ली) लेखक – भारतरत्न नंदा जी केल शिष्य -दैनिक समाज जागरण के सलाहकार संपादक हैं -9802414328

टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के सचिव बने जिसमें उन्होंने 1946 तक काम किया।
     उन्हें 1932 में सत्याग्रह के लिए जेल जाना पड़ा एवं फिर 1942 से 1944 तक भी वे जेल में रहे। श्री नंदा 1937 में बम्बई विधान सभा के लिए चुने गए एवं 1937 से 1939 तक वे बंबई सरकार के संसदीय सचिव (श्रम एवं उत्पाद शुल्क) रहे। बाद में, बंबई सरकार के श्रम मंत्री (1946 से 1950 तक) के रूप में उन्होंने राज्य विधानसभा में सफलतापूर्वक श्रम विवाद विधेयक पेश किया। उन्होंने कस्तूरबा मेमोरियल ट्रस्ट में न्यासी के रूप में, हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ में सचिव के रूप में एवं बाम्बे आवास बोर्ड में अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे राष्ट्रीय योजना समिति के सदस्य भी रहे। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के आयोजन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बाद में इसके अध्यक्ष भी बने थे।गुलज़ारी लाल नंदा एक राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे। इस कारण भारत के स्वाधीनता संग्राम में इनका काफ़ी योगदान रहा। नंदाजी का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित था। 1921 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। नंदाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मुम्बई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।

अहमदाबाद की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और 1922 से 1946 तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर गुज़ारा। यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का प्रयास करते रहे। 1932 में सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान और 1942-1944 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इन्हें जेल भी जाना पड़ा।1926 का श्रमिक आंदोलन गुलज़ारीलाल नंदा सहभागिता में होलकर राज्य की चूलें हिला देने वाला इतिहास रहा है। ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 सामूहिक सौदेबाजी को सक्षम करने के लिए श्रम के वैध संगठन को प्रस्तुत करने की दृष्टि से ट्रेड यूनियनों (नियोक्ताओं के संघ सहित) के पंजीकरण का प्रावधान करता है। अधिनियम एक पंजीकृत ट्रेड यूनियन को कुछ सुरक्षा और विशेषाधिकार भी प्रदान करता है।भारत का प्रथम ट्रेड यूनियन एक्ट सन 1926 में पारित हुआ था |
नंदाजी मुम्बई की विधानसभा में 1937 से 1939 तक और 1947 से 1950 तक विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार मुम्बई सरकार में रहते हुए देखा। 1947 में ‘इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की स्थापना हुई और इसका श्रेय नंदाजी को जाता है। मुम्बई सरकार में रहने के दौरान गुलज़ारी लाल नंदा की प्रतिभा को रेखांकित करने के बाद इन्हें कांग्रेस आलाक़मान ने दिल्ली बुला लिया। यह 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे। ऐसे में भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में इनका काफ़ी सहयोग पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्होंने निम्नवत् प्रकार से केन्द्रीय सरकार को सहयोग प्रदान किया.
गुलज़ारी लाल नंदा ने सन 1921 में असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। इसके बाद सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने के लिए उन्हें सन 1932 में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। सन 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया और सन 1944 तक जेल में रखा गया। सन 1937 में उन्हें बॉम्बे विधान सभा के लिए चुना गया – उन्होंने 1937 और 1939 के मध्य बॉम्बे सरकार में संसदीय सचिव (श्रम और उत्पाद शुल्क) का कार्य निभाया।
बॉम्बे सरकार में श्रम मंत्री के तौर पर उन्होंने ‘श्रमिक विवाद विधेयक’ को सफलता पूर्वक पास कराया। वे ‘हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ’ का सचिव और ‘बॉम्बे हाउसिंग बोर्ड’ का अध्यक्ष भी रहे। वे राष्ट्रिय योजना समिति के सदस्य भी रहे। ‘इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ के गठन में उनकी प्रमुख भूमिका रही और बाद में वे इसके अध्यक्ष भी बने। सन 1947 में नंदा को सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर स्विट्ज़रलैंड में ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर सम्मेलन’ में भाग लेने के लिए भेजा गया। इसी दौरान उन्होंने श्रमिक और आवासीय व्यवस्था के अध्ययन के लिए स्वीडन, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, बेल्जियम और यूनाइटेड किंगडम का दौरा किया। 1937 में श्री नंदा की नियुक्ती बॉम्बे वैधानिक असेंबली में की गयी और बॉम्बे सरकार में वे 1937 से 1939 तक सेक्रेटरी (मजदुर और एक्साइज) के पद पर कार्यरत थे। इसके बाद बॉम्बे सरकार (1946-50) के मजदुर मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने सफलता पूर्वक मजदूरो की समस्याओ को दूर किया।उन्होंने कस्तूरबा मेमोरियल ट्रस्ट का ट्रस्टी बनकर, हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ का सेक्रेटरी बनकर और बॉम्बे हाउसिंग बोर्ड का चेयरमैन बनकर सेवा भी की थी। भारतीय राष्ट्रिय व्यापार संघ को स्थापित करने में भी उन्हें बहुत प्रयास किये थे और बाद में वे उसके अध्यक्ष भी बने।
ब्रिटिश भारत में श्रमिक आंदोलन के आयोजन में नारायण मेघाजी लोखंडे अग्रणी थे। लोखंडे को भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के जनक के रूप में प्रशंसित किया गया है।जबकी गांधीवादी धार्मिक राजनीति के जनक गुलजारीलाल नंदा माने गए, गांधी जी सिद्धांत के श्रमिक आंदोलन की बुनियाद में गांधी जी को श्रमिक आंदोलन में हर जगह योगदान से सफलता मिली।

गीता उपदेश स्थली का विकास विश्व चर्चा में हुआ – सदाचार मुल्यो के खिलाफ लड़ाई में नंदा जी ने शानदार काम किया -1963 -1966 फेलाया शायद ही कोई राज नेता विश्व पटल से भारत में होगा। आधुनिक तीर्थों की विकास यात्रा में उनके नाम महाभारत रणभूमि के उजाड़ तीर्थों का जिक्र करने के लिए कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में अजर अमर है।

शिखर पदों में रहकर भी एक मकान तक क्यों नहीं बनाया ?

   देश में जब भी चर्चा होती है कि नंदा जी शिखर पदों में रहकर भी एक मकान तक क्यों नहीं बनाया तो इसका जवाब नंदा जी ने खुद दिया था——कि मै गुलजारीलाल नंदा स्वतन्त्रता सेनानी गाँधी जी के सिध्दांत पर अपनी अंतरात्मा देश के लोकतंत्र के जमीर से वचनवर्ध्द हूँ कि जबतक देश की जनता रोटी कपड़ा रोजगार घर की छत से परिपूर्ण नहीं हो जाती मैं स्वतंत्र्ता सेनानी इस देश की सत्ता में बैठकर अपने लिए या पने परिवार के लिए लेश मात्र भी धन अर्जित नहीं करूँगा। उन्होंने अपना शेष जीवन किराये के मकान में ही ही निकाला या उनकी बेटी डा पुष्पा नायक के अनुरोध पर उनके पास ही अंतिम साँस ली। 
नंदा जी ने आजीवन अपने को या परिवार को कभी भी अपनी सत्ता पद प्रतिस्ठा के निकट नहीं आने दिया। कितनी ही आर्थिक कठिनाई उन्हें डिगा नही सकी निष्काम सेवा के धनी नंदा जी सदाचार के ध्वज कहलाये। 

लेखक – भारतरत्न नंदा जी के परम शिष्य, दैनिक समाज जागरण नोएडा के सलाहकार संपादक हैं –

 

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