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बिर्टेन उपलब्धि अविष्कार में – भारत क्यों पीछे ?– गाय गोबर से ट्रेक्टर संचालित होगी मीथेन गैस –ईंधन क्रांति बोली जागो भारत –

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—samaj jagran 24tv चंडीगढ —
भारत में गाय के गोब और मूत्र को बहुत ही महत्व दिया जाता है. पौराणिक काल से ही गाय के गोबर को पूजा में उपयोग जा रहा है. वहीं, मूत्र से कई तरह की आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जा रही हैं. लेकिन, आधुनिक समय में गाय के गोबर का उपयोग और भी बढ़ गया है. अब दिवाली पर गाय के गोबर से ईको फ्रेंडली दीये भी बन रहे हैं. साथ ही कई राज्यों में गाय के गोबर से नेचुरल पेंट भी तैयार हो रह हैं. ज्यादातर भारत में गाय के गोबर को खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन इन सभी के बीच सबसे बड़ी खबर ये है कि अब गाय के गोबर से ट्रैक्टर भी चलेंगे।
अब गाय गोबर से तैयार ईंधन से ट्रेक्टर चलने से ट्रेक्टर क्रांति हो रही है मगर यह भारत में नहीं होलेंड से खबर आई है। एक ब्रिटिश कंपनी ने अब गाय के गोबर से बने मीथेन गैस से चलने वाला ट्रैक्टर—-

बिर्टेन उपलब्धि अविष्कार में – भारत क्यों पीछे —बनाया है. भारत क्यों पीछे है गौधन प्रेमियों के लिए चिंतन है यह मुद्दा गुलज़ारीलाल नंदा फाउंडेशन के अध्यक्ष समाज विज्ञानी कृष्ण राज अरुण ने उठाया है –

 

 

—भारत के लिए भी चिंतन योग्य अच्छी खबर है —
ब्रिटिश कंपनी द्वारा गाय के गोबर से चलने वाले ट्रैक्टर के आविष्कार पर भारत के पीछे होने का कारण भारत में इस तकनीक को अपनाने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी, पूंजी निवेश का अभाव, सही नीतियों की कमी और जागरूकता की कमी जैसे कई कारक हैं। इन कारकों को समझना गुलज़ारीलाल नंदा फाउंडेशन के अध्यक्ष समाज विज्ञानी कृष्ण राज अरुण के उठाए गए चिंतन का मूल है, जो भारत में गो-धन प्रेमी किसानों और गौ-आधारित टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
ब्रिटिश कंपनी के आविष्कार के मुख्य बिंदुईंधन:
गाय के गोबर से बनी बायोमीथेन गैस का उपयोग किया जाता है, जो डीजल की तुलना में अधिक किफायती और पर्यावरण के अनुकूल है।
प्रौद्योगिकी:
लगभग 100 गायों के गोबर से उत्पन्न मीथेन गैस को क्रायोजेनिक टैंक में तरल रूप में परिवर्तित करके ट्रैक्टर को चलाया जाता है।
प्रदर्शन:यह ट्रैक्टर डीजल-चालित ट्रैक्टर के समान ही प्रदर्शन करता है और प्रदूषण को कम करता है।
लाभ:
इससे किसानों को डीजल खर्च में बचत होती है, साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद मिलती है।
भारत में उपयोगिता गावों के जुगाड़ से हो रही है मगर भारत उत्पादक बाजार पीछे है –
मध्य प्रदेश में गायों के गोबर से CNG प्लांट आरम्भ की तैयारी हो चुकी है मगर ट्रेक्टर मीथेन गैस से क्रांति आना बाकी है –

भारत में देरी के कारण- बुनियादी ढांचे की कमी:–
भारत में बायोमीथेन उत्पादन और वितरण के लिए आवश्यक संयंत्रों और बुनियादी ढांचे की कमी है।
पूंजी निवेश का अभाव:
इस तकनीक को विकसित करने और किसानों तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त पूंजी निवेश की आवश्यकता है।
सरकारी नीतियां:
इस तरह की नई तकनीकों को अपनाने और बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट और सहायक सरकारी नीतियों की आवश्यकता है।
जागरूकता की कमी:
कई किसानों और हितधारकों के बीच इस तकनीक की क्षमता और लाभों के बारे में जागरूकता की कमी है।
इस प्रकार, गाय के गोबर से चलने वाले ट्रैक्टर का आविष्कार भारत में गौ-आधारित टिकाऊ कृषि और ऊर्जा स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इस मुद्दे को हल करने के लिए उपरोक्त चुनौतियों को दूर करने के लिए सामूहिक प्रयास और सरकारी सहायता आवश्यक है।

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