हिमाचल उत्तराखंड जम्मू पंजाब में हुई तबाही से हिमालय को सबक सीखने की सख्त जरूरत -गुलज़ारीलाल नंदा फाउंडेशन

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— टीना ठाकुर —
शिमला /चंडीगढ – मानवता के वैज्ञानिकों सहित देश के सत्तारूढ़ शिखर को वैज्ञानिकों द्वारा दी गयी समय समय पर चेतावनियों पर गंभीरता से ध्यान देने का वक्त आ चूका है। यह बात देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न नंदा जी के परमशिष्य गुलज़ारीलाल नंदा फाउंडेशन दिल्ली के चेयरमेन कृष्णराज अरुण ने आपदा से जूझते हिमालय सहित दिल्ली पहुंची यमुना के रौद्ररूप पर ध्यान दिलाते कहि है।
उन्होंने हमारे दैनिक से खास भेंट में कहा कि हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू में हाल ही में हुई तबाही हिमालय के लिए एक चेतावनी है, जो अनियंत्रित विकास, ग्लेशियरों के पिघलने, और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है। इन आपदाओं से सबक लेते हुए हिमालयी क्षेत्रों में विज्ञान-आधारित ढांचागत विकास, हिमखंडों के अध्ययन और ऐसी बसावटों पर ध्यान देने की आवश्यकता है जो हिमखंडों के पिघलने से बनी झीलों के फटने के जोखिम को कम कर सकें। उन्होंने कहाकि वैज्ञानिकों की ताज़ी रिपोर्ट अनुसार अभी कई झीलें विस्फोटक स्थिति में बम बनकर नै आपदाओं के लिए तैयार बताई जा रही हैं।
न्यूज़पेपर्स एसोसिएशन आफ इंडिया दिल्ली एनए आई के राष्ट्रीय कार्यकारी उपाध्यक्ष श्री के आर अरुण के अनुसार अब तमाम उन भूलों को समझने और प्रायश्चित करने का वक्त आ गया है जो जाने अनजाने होती रही हैं।यह भूलें वैज्ञानिक भी बता चुके हैंकि पर्वतीय क्षेत्रों में बिना सोचे-समझे और अनियंत्रित निर्माण कार्य प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ने से हवाएं बड़ी मात्रा में जल लेकर पहाड़ों की ओर बढ़ रही हैं, जिससे बादल फटना और भारी बारिश होना आम बात हो गई है।
समझना जरूरी हैकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ने से हवाएं बड़ी मात्रा में जल लेकर पहाड़ों की ओर बढ़ रही हैं-
श्री अरुण अनुसार नदियों के मार्ग में मकान बनाने शौकिया मिजाज लोगों को अब नदियों के विनाशकारी जलप्रलय रूप से हुई तबाही को समझते हुए नदियों से दुरी पर ही मकान बनाने की जरूरत पर जोर देना चाहिए। यह समझना जरूरी हैकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ने से हवाएं बड़ी मात्रा में जल लेकर पहाड़ों की ओर बढ़ रही हैं, जिससे बादल फटना और भारी बारिश होना आम बात हो गई है। जैसाकि तेज बारिश और बादल फटने से भूस्खलन और बाढ़ आ रही है, जिससे भारी तबाही हो रही है और लोगों की जानें जा रही हैं। वास्तव में ढांचागत विकास के लिए विज्ञान-आधारित नई सोच अपनाना ज़रूरी है, न कि अपनी सहूलियत के हिसाब से विकास करना। हिमालय से जुड़े राज्य सरकारों को यह ध्यान अवश्य देना होगा कि हिमखंडों के नीचे की बसावटों पर विशेष ध्यान देने और उनके पिघलने से बनने वाली झीलों की प्रक्रिया का अध्ययन करने की आवश्यकता है
पूर्व पीएम भारतरत्न नंदा के परम् शिष्य श्री अरुण चर्चित समाज विज्ञानी के रूप में शासन समाज व्यवस्था पर शोध विशेष्ज्ञ रह चुके हैं का कहना हैकि यह सरकार की ही नहीं, बल्कि हर नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह हिमालय में हो रही घटनाओं के प्रति गंभीर हो। इसके लिए सामाजिक मान्यता वाले जीवित समाज को आगे आना होगा जिसमे स्वेछिक संस्थानों को भी कमर कसनी होगी ताकि वनों की कटाई के नुकसान की भरपाई जल्द हो सके।
इसके लिए मिशन विजन स्पस्ट होना चाहिए क्योंकि हिमालयी क्षेत्रों में ऐसे विकास मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है जो पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन को ध्यान में रखकर किए जाएं, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचा जा सके। यहाँ यह समझना महत्वपूर्ण है कि हिमालय केवल एक प्राकृतिक धरोहर नहीं, बल्कि देश और दुनिया के जल और हवा का सबसे बड़ा स्रोत है, इसलिए इसकी सुरक्षा हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।
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