विज्ञानियों का चिंतन आया सामने – धरती खत्म हो जाएगी तो कहां रहेंगे लोग!-क्या खोजै जा रहा है इंसानों का अगला ठिकाना-

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नई दिल्ली – के आर अरुण –
-samajjagran24tv.कॉम
विशेष चिंतन – जैसाकि 6.6 करोड़ साल पहले जुरासिक एज में धरती से जीवन तबाह हो गया था. आने वाले समय में भी ऐसा हो सकता है. इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में इंसानों को अपना वजूद कायम रखना है तो उन्हें अपने लिए दूसरा ठिकाना भी तलाश करना होगा. ब्रह्मांड में ऐसे कई ग्रह हैं जो धरती से मिलते जुलते हैं. अगर किसी कारण पृथ्वी पर जीवन को खतरा होता है तो हमें किसी एक्सोप्लैनेट में ही अपना ठिकाना बनाना होगा।
नासा को अगर आज पता चल जाए कि जुलाई 2038 में एक एस्टेरॉयड धरती से टकरा सकता है और इसके पृथ्वी से टकराने की संभावना 72 फीसदी से भी ज्यादा है. यानी संदेह हैकि 13 साल बाद आने वाली आफत से बचाव का धरती के लोगों के पास क्या विकल्प होगा- दरअसल, कुछ समय पहले नासा ने ऐसी ही आपदा को लेकर एक मॉक टेस्ट किया था. नासा के जॉन हॉपकिंस अप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी में दुनियाभर के 25 से ज्यादा संगठनों के करीब 100 एक्सपर्ट्स जुटे थे. इस इवेंट में इस बात पर चर्चा हुई थी कि अगर कोई एस्टेरॉयड 13 साल बाद धरती से टकराने आ रहा है तो हम बचाव में क्या-क्या कदम उठा सकते हैं. इस मॉक टेस्ट की रिपोर्ट नासा ने 20 जून 2024 को प्रकाशित की थी, जिसमें वैज्ञानिकों ने कई उपाय सुझाए. बहरहाल यह महज एक मॉक टेस्ट था, लेकिन अगर सच में ऐसी कोई बड़ी आपदा आती है तो धरती का क्या होगा? यह सवाल वैज्ञानिकों को लंबे समय से परेशान कर रहा है।
विज्ञानियों की चिंता मानें तो –
अंतरिक्ष से अलग-अलग तरह के एस्टेरॉयड के आने और इसके धरती से टकराने के खतरे को हम नजर अंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि करोड़ों साल पहले ऐसा हो चुका है. अब से 66 मिलियन साल पहले जुरासिक एज में धरती से एक एस्टेरॉयड की टक्कर हुई थी. इस टक्कर में धरती के सबसे बड़े जीव एस्टेरॉयड समेत कई जानवरों की पूरी प्रजाति खत्म हो गई थी. तबाही यहीं नहीं रुकी थी उस समय के पेड़ पौधे, वनस्पति, वातावरण सब एस्टेरॉयड के कारण खत्म हो गए थे. मतलब साफ है जो एक बार हो चुका वैज्ञानिक यह बात मानते हैं कि एक न एक दिन धरती से जीवन खत्म हो सकता है।
दुनिया के सबसे महानतम साइंटिस्टों में से एक स्टीफन हॉकिंग ने अपनी किताब ‘ब्रीफ आंसर्स टू द बिग क्वेश्चन’ में धरती और इस पर बसे इंसानों के जीवन से जुड़े कई जरूरी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है. इसी किताब में उन्होंने कई भविष्यवाणियां और दावे भी किए हैं. उन्हीं दावों में से एक है कि कोई अंतरिक्षीय दुर्घटना पूरी पृथ्वी का विनाश कर सकती है. मानवों को इसे नजर अंदाज नहीं करना चाहिए. स्टीफन ने यह भी लिखा है कि अंतरिक्ष जितना शांत दिखता है असल में यह उतना शांत है नहीं. अंतरिक्ष में भारी उथल-पुथल है. यहां तारे हैं, ब्लैक होल है, वाइट होल समेत न जानें और कितने बड़े-बड़े ऑब्जेक्ट हैं जो दूसरे तारों, सोलर सिस्टम यहां तक की एक गैलेक्सी तक को निगल जाते हैं।
यानि कॉस्मिक किरणें पल भर में किसी ग्रह को तबाह कर सकती हैं. बड़े-बड़े नगर और शहर के जितने बड़े उल्का पिंड हजारों किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से घूम रहे हैं. अगर इनमें एक का भी रुख धरती की तरफ हो जाता है तो हमारा विनाश निश्चित है.है वो दोबारा भी हो सकता है. अंतरिक्ष से आने वाले खतरे को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या एक बार फिर धरती से जीवों का समूल नाश हो सकता है? क्या कभी ऐसा होगी कि धरती इंसानों के रहने लायक नहीं बचेगी? क्या आज की विकसित मानव सभ्यता डायनोसॉर्स की तरह खत्म ही हो जाएगी।
मानवों को इसे नजर अंदाज नहीं करना चाहिए. स्टीफन ने यह भी लिखा है कि अंतरिक्ष जितना शांत दिखता है असल में यह उतना शांत है नहीं. अंतरिक्ष में भारी उथल-पुथल है. यहां तारे हैं, ब्लैक होल है, वाइट होल समेत न जानें और कितने बड़े-बड़े ऑब्जेक्ट हैं जो दूसरे तारों, सोलर सिस्टम यहां तक की एक गैलेक्सी तक को निगल जाते हैं. कॉस्मिक किरणें पल भर में किसी ग्रह को तबाह कर सकती हैं. बड़े-बड़े नगर और शहर के जितने बड़े उल्का पिंड हजारों किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से घूम रहे हैं. अगर इनमें एक का भी रुख धरती की तरफ हो जाता है तो हमारा विनाश निश्चित है.

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