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दुनिया हिमयुग वापसी के खतरे को समझे-खतरे को टालने के लिए जरूरी उपाय वाले समझौते प्रयास बनें तभी विकल्प –

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दुनिया हिमयुग वापसी के खतरे को समझे – खतरे को टालने के लिए जरूरी उपाय वाले समझौते प्रयास बनें तभी विकल्प – – कृष्ण राज अरुण –

– – कृष्ण राज अरुण –समाज जागरण 24tv.com –
ग्लोबल वार्मिंग बनता जा रहा क्लाइमेट चेंज के चलते धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इससे लगातार ग्लेशियर पिघल रहे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने का मतलब समुद्र में जल स्तर की वृद्धि होना है। खबरें चिंता दे रही हैं की जल्द हिमयुग लौटेगा यदि यूँही तापमान बढ़ता रहा जलवायु ने परिवर्तन का समय निर्धारित नहीं किया तो कठिन होगा भविष्य ?
समझिये हिमयुग क्या है –
हिमयुग या हिमानियों का युग पृथ्वी के जीवन में आने वाले ऐसे युगों को कहते हैं जिनमें पृथ्वी की सतह और वायुमंडल का तापमान लम्बे अरसों के लिए कम हो जाता है, जिस से महाद्वीपों के बड़े भूभाग पर हिमानियाँ (ग्लेशियर) फैल जाते हैं। ऐसे हिमयुग पृथ्वी पर बार-बार आयें हैं और विज्ञानिकों का मानना है के यह भविष्य में भी आते रहेंगे। आख़री हिमयुग अपनी चरम सीमा पर अब से लगभग २०,००० साल पूर्व था। माना जाता है कि यह हिमयुग लगभग १२,००० वर्ष पूर्व समाप्त हो गया, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रीनलैंड और ऐन्टार्कटिका पर अभी भी बर्फ़ की चादरें होने का अर्थ है कि यह हिमयुग अपने अंतिम चरणों पर है और अभी समाप्त नहीं हुआ है।जब यह युग अपने चरम पर था तो उत्तरी भारत का काफ़ी क्षेत्र हिमानियों की बर्फ़ की मोटी तह से हज़ारों साल तक ढका हुआ था
वैज्ञानिकों के अनुसार यह सब मानवता के विनाश के कारक हैं। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार जीवित समाज गौर करे तो निश्चय ही , क्या धरती पर सबकुछ खत्म हो जाएगा, क्या धरती पर कोई बड़ी तबाही आने वाली है, क्या फिर से धरती पर हिमयुग की वापसी हो सकती है?…यह सब सवाल इसलिए हैं कि धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है और वैज्ञानिकों के अनुसार इसे रोका नहीं गया तो महाविनाश होने से कोई बचा नहीं सकता।
पेरिस जलवायु समझौते को जब 2015 में अपनाया गया तो इसके माध्यम से पृथ्वी पर मानवता के सुरक्षित भविष्य की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया था। समझौते पर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के संकल्प के साथ दुनिया भर के 196 दलों ने हस्ताक्षर किए थे, जो मानवता के भारी बहुमत का प्रतिनिधित्व करते थे। लेकिन बीच के आठ वर्षों में, आर्कटिक क्षेत्र ने रिकॉर्ड तोड़ तापमान का अनुभव किया, गर्मी की लहरों ने एशिया के कई हिस्सों को जकड़ लिया और ऑस्ट्रेलिया ने अभूतपूर्व बाढ़ और जंगल की आग का सामना किया।
गिलेशियर रिपोर्ट कहती है –
हाल ही में हुए एक अध्ययन के परिणामों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन से हिमालयी ग्लेशियरों के प्रभावित होने की रफ्तार बढ़ गई है। अध्ययनकर्त्ताओं ने हिमालय में 650 ग्लेशियरों पर चार दशकों के दौरान बर्फ के पिघलने का विश्लेषण किया और पाया…
वर्ष 1975 से वर्ष 2000 के बीच हर साल औसतन चार बिलियन टन बर्फ पिघल रही थी, लेकिन वर्ष 2000 से वर्ष 2016 के बीच ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो गई और इस अवधि में औसतन हर साल लगभग 8 बिलियन टन बर्फ पिघली।
वर्ष 2000 के बाद से यह भी देखने में आया कि ग्लेशियर औसतन प्रतिवर्ष 0.5 मीटर की दर से सिकुड़ रहे हैं।
ये घटनाएं हमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों की याद दिलाती हैं।
इसके बजाय हमारे नए प्रकाशित शोध तर्क देते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग या उससे नीचे के 1 डिग्री सेल्सियस पर ही मानवता सुरक्षित है। जबकि एक चरम घटना को पूरी तरह से वैश्विक तापन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि गर्म दुनिया में ऐसी घटनाओं की संभावना अधिक होती है।समुद्र का बढ़ता स्तर ग्लोबल वार्मिंग का एक अनिवार्य परिणाम है। यह बढ़ी हुई भूमि की बर्फ के पिघलने और गर्म महासागरों के संयोजन के कारण है, जिससे समुद्र के अधिक होती है।
क्या इतिहास ने जो कदम उठाये उसपर नजर जरूरी नहीं –
हिमयुग के लौटने के खतरे को अभी रोकने के लिए भारत को दुनिया के समाज जागरण की जरूरत है। यह एक मजबूत कदम होगा ताकि जीवित् समाज कदम से कदम मिला सके। गुलज़ारीलाल नंदा फाउंडेशन का समाज कार्य अनुसंधान के प्रमुख समाज विज्ञानी कृष्णराज अरुण के अनुसार पर्यावरण हित सहयोगी चाहते हैं की भारत में लोक सभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार का पहला कदम इस दिशा में कार्यशाला विद्द्वानो की बुलाकर तुरंत मंथन हो।

आधुनिक सभ्यता पर बने परिणाम पर गौर करें तो शोध बताता हैकि आधुनिक सभ्यता का उदय और कृषि क्रांति असाधारण रूप से स्थिर तापमान की अवधि के दौरान हुई थी। हमारे खाद्य उत्पादन, वैश्विक बुनियादी ढाँचे और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ (इकोसिस्टम द्वारा मनुष्यों को प्रदान की जाने वाली वस्तुएँ और सेवाएँ) सभी उस स्थिर जलवायु से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं।
जरूरी कदम सुधार प्रयोग –
सामान्य तौर पर, यह महसूस किया जाता है कि हिमयुग सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों से उत्पन्न सकारात्मक प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला प्रतिक्रिया के कारण होता है। बर्फ के फैलाव और ग्रीनहाउस गैसों की रिहाई से जुड़ी ये प्रतिक्रियाएं, कक्षीय चक्र वापस शिफ्ट होने पर पृथ्वी को फिर से गर्म करने के लिए विपरीत तरीके से काम करती हैं।
परमाणु युद्द जैसे खतरे भी हिम युग की वापसी तेज करेंगे निश्चय ही खतरा है। परमाणु बमों के इस्तेमाल से पर्यावरण में इतना धुआं और धूल कण उत्पन्न होगा कि वह उपर पर्यावरण में जाके सुर्य की कीरणो को धरती के सर्फेस तक आने हि नहि देंगे ओर जिससे प्रथ्वी का तापमान गीरने लगेगा पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण किर्या करना बंद कर देंगे ओर वो मरने लगेंगे फिर धीरे धीरे आक्सीजन कि कमी के कारण वन्य जीव जंतु मरने लगेंगे और धरती विरान होने लगेगी। बनते जा रहे महाशक्ति देश के विद्द्वानो को समझना होगा परमाणु हथियार किसी भी देश के हित में नहीं हो सकते –

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